प्रेम-विरह (गीत)
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जी सकेंगे न तुम बिन
अकेले कभी
आंधी में जिंदगी के
बिखर जाएंगे
जी सकेंगे न तुम बिन
अकेले कभी
हाथ जब छोड़ दोगे
मेरा राह में
हम भटकते ही रह जायेंगे
उम्र भर
आंसुओं का समंदर
उमड़ आएगा
डूब जायेगा सपनों का
सुन्दर शहर
वक़्त का ये परिंदा भी
उड़ जाएगा
काटकर के मेरी
कल्पनाओं के पर
तेरी कसमें ,वो वादे
इरादे सभी
तेरी गलियों में आकर
ठहर जाएंगे
जी सकेंगे न तुम बिन
अकेले कभी
तेरे जीवन का अनमोल
हर पल मेरा
तेरी बिंदिया,ये आँचल
ये काजल मेरा
तू मेरी आस में
तू ही विश्वास में
तेरी खुशबू बसी
मेरी हर सांस में
तू मेरा प्यार है
मेरा संसार है
मेरे जीवन का बस
तू ही आधार है
मेरी मंजिल हो तुम
हो किनारा तुम्ही
तुमने छोड़ा तो बोलो
किधर जायेंगे
जी सकेंगे न तुम बिन
अकेले कभी
बीत जायेंगे दिन ये
तड़पते हुए
रातें रोयेंगी हर पल
तेरी याद में
हर दुआ,प्रार्थना में
रहोगे तुम्ही
पाओगे खुद को तुम
मेरी फरियाद में
जाने से पहले फिर
सोच लो एक दफा
जाने किस्सा हो क्या
फिर तेरे बाद में
तुम ह्रदय में बसी
धड़कनों की तरह
साथ छोड़ा तो पल भर में
मर जाएंगे
जी सकेंगे न तुम बिन
अकेले कभी
रचनाकार-संजय श्रीवास्तव 'कौशाम्बी'
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